Thursday 20 November 2008

“ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन”

यह कविता तब की है जब "भारत और पाकिस्तान" के बीच सन् १९९९ में 'कारगिल' में सीमा सुरक्षा को लेकर धमासान युध्ध हुआ था |" नवाज़ शरीफ " उस वक़्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे | जैसा की आप जानते होंगे , इससे पहले भी दो बार सन् १९६५ और १९७१ में इसी मुद्दे को लेकर लडाई हुई थी और हरेक बार भारतीय झंडा ही लहराता आया है | बस इसी को धयान में रखते हुए उन वीर जवानों को एक सुनहरा श्रधांजली भरा भेंट.............जिसने अपनी जान पर खेलकर हम भारतीयों की रक्षा की |



सृष्टी शायद रहस्य है , अठखेलियाँ और हास्य है ,
तेरे ह्रदय को शीतल समर्पित , भारतीय तेरे साथ है,
दुश्मनों की चाल से , जग राष्ट्र को कर दे अमन ,
ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन , ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन |


पैंसठ इकहत्तर और सदी का , युध्ध अंतिम याद कर,
वीरों ने खायी गोलियां , बहुत खूब सीना तानकर,
यूँ ही पीठ दिखाकर भागोगे , आएगी न कभी अकल,
ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन , ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन |


लाखों वादे इरादे करके , "नवाज़" आये न बाज़ तुम,
खाक में मिल जाओगे , मेरे एक फूंक के साथ तुम ,
असीम अश्रुजल सागर में , बह जाओगे सारे सकल ,
ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन , ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन |


अँधेरा, खामोशी और तन्हाई , रात के तीन पांव होते हैं ,
गुमसुम ,उदासी और बर्बादी , सरेआम होते हैं ,
उस रात में तुम सो जाओगे , न आएगी फिर कभी चैन ,
ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन, ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन |


मैं जानता हूँ मैं " सूरज " हूँ, पर और किसी ने नहीं जाना,
मंझधार है,भंवर है, पास है किनारा,
कश्ती किधर चली है कोई नहीं बताता,
मंझदार में भी हम तुम्हें , देतें है अपनी शेरो कलम,
ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन, ऐ वीर तुम्हें सौ-सौ नमन |

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