Monday 12 January 2009

“ ख्वाब “- एक ग़ज़ल

टूट गया है चाँद बिखरकर , यादों की गहराई में ,
यादों को संजोने को , अब हम घबराते हैं ,
दिन में है चैन नहीं , रातों को ख्वाब डराते हैं ,
दिन रात यूँ ही डरकर हरदम , धड़कन दिल से बतियाते हैं |


अरमानों के खजाने में , पड़े कब से ताले हैं ,
लाख तड़पकर भी सपने , याद वही आते हैं ,
दिन रात उन्हें जोड़ता हूँ , सुबह बिखर जाते हैं ,
दिन रात यूँ ही डरकर हरदम , धड़कन दिल से बतियाते हैं |


यूँ आप जिसे सोचते हैं , हम वही लिखते मिटाते हैं ,
कभी खुद को तो कभी , औरों को बताते हैं ,
भूल-भुलैया बन कर रह गयी हर गली , कैसे कहें कहाँ भूल जाते हैं ,
दिन रात यूँ ही डरकर हरदम ,धड़कन दिल से बतियाते हैं |


आज ग़ज़ल लिखने जो बैठा , फिर से आँखें भर आयी है ,
सोचने पर मजबूर हूँ , पर कलम ही ठहर जाती है ,
आप तलक जाने की खातिर , ग़ज़ल हमारी पाती है ,
नहीं पहुँचा तो सोच लूँगा , ग़ज़ल ही मेरा साथी है ,
दिन रात यूँ ही लिखकर हरदम ,धड़कन खुद से बतियाते हैं |