Thursday 20 November 2008

" काश ...!! "

ख़त कैसे लिखूं ये तो मेरी आदत नहीं है,

क्यूंकि तुझसे बिछरकर जीने की आदत नहीं है,

सोचता हूँ की ये आदत अभी बदल लूँ ,

पर क्या करूँ ख़त लिखने की तुम्हारी इजाजत नहीं है |



मैं तो यूँ ही चला आया हूँ कुछ सपने लेकर,

वो सोचते हैं कि जायेंगे मुझे कुछ दर्द देकर,

मै तो चाँद को चुराने आया था,

काश ..! चला जाता मैं आपके दिल को चुराकर |



मेरा क्या तेरा क्या सब कुछ तो हमारी होगी,

जब कुछ भी नहीं होगा तब तू ईद की चाँद होगी,

कभी कुछ मांग कर तो देखो मुझसे,

होठों पर हंसी और हथेली पे जान होगी |

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