Wednesday, 19 November 2008

"हिंदी साहित्य"

(02) बसंत की हो आंधियां,या हो जेठ की धुप,

'सूरज' को नहीं कभी हुआ है खुद पर गुरुर,

भारतीयों से एक बात हम कहना चाहेंगे जरूर,

बिना 'हिंदी' बोले तुम्हारी मंजिल होगी दूर |

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