Monday 2 May 2016

कमबख्त दिल !


जब भी आपका ज़िक्र उठता है फिजाओं में,
कुछ आहटें हम तक भी पहुच जाती है।

इक एहसास सी हवायें जब दिल को लगती है,
मेरी धडकनों को और तेज़ कर जाती है।

संभाला करता हूँ खुद को,इन अनछुई जज्बातों से,
पर सांसें हैं की अक्सर थम सी जाती है।

ना जाने हर लम्हा क्यूँ चौंक सा जाता हूँ ,
पास होकर भी खुद को दूर पाता हूँ ।

अलफ़ाज़ अपनी अब क्या बयां करूँ ,
मौसम कोई भी हो, हर शाम तेरी याद बरसती है।

अब तो हर वक़्त यही इंतज़ार रहता है,
कमबख्त दिल अक्सर बेक़रार रहता है।

अभी-अभी

बस अभी-अभी की ही तो बात है
जब मेरी एक दोस्त ने मुझसे पूछा
कैसे बयाँ करूँ अपने दिल के जज्बात
एक लड़के से, जिससे शायद उसे हो गया है प्यार
डरती है कुछ भी ऐसा कहने से
कहीं दिल का कोई कोना ना टूट जाये
क्या पता
शायद उस लड़के को भी
उस लड़की से हो इतना ही प्यार
फिर भी एक घबराहट सी है
दोनों को एक दूसरे से
अपने दिल की बात बताने में
मैंने कहा
बुध्धू कहीं की
प्यार अगर है तुझे
तो डरना किस बात का
कुछ ऐसा कर
जिससे उसे भी हो जाये तुमसे प्यार
और फिर बस प्यार और इकरार
फिर कभी-कभी आपस में तकरार
यही है जिंदगी मेरे यार ।

!! तोहफ़ा !!



ये शानदार तोहफा है तेरा मुझे,
कि तुम हर पल ख्यालों में आती हो,
हर गुजरते वक़्त,
मुश्किलों को झेलने का हौसला बढाती हो ।

तू मुझमें बसी कुछ इस क़दर है,
कि हर सफ़र, हर जगह,
बेक़रार दिल ढूँढता बस तुम्हें है,
कम्बखत रास्ते, कहीं और ले आता है ।

तू ज़रा सा हाथ बढ़ा दे अब,
कि तुझे शिद्दत से छू लूँ अभी,
तमाम रूह की लज्ज़त है अब,
कि कुछ गुफ्तगू कर ली जाये ।

पता नहीं ये सपने रहे ना रहे,
और दिन में देखे हुए ख्वाब,
ये तुमसे जुड़ने की है कोशिशें,
कि हर कदम ख्वाबों की ताबीर बनाती हो ।

मंजिल

रास्ता जितना मुश्किल होता है,
मंजिल उतना ही सुकून देती है,
पर लोगों को कौन समझाए,
रास्ते को खुद मुश्किल बना लेना भी,
उतनी ही परेशान करती है !
गर इतना ही गुरूर है खुद पर,
तो टेढ़े रास्तों को मत कोस अब,
आगे बढ़, कुछ हटकर कर,
हिम्मत रख, फिर देखना,
लाख हवाएं, आंधियां लाये,
जैसे बरखा की रिमझिम नहीं थमती,
उस बादल के बौछार की तरह,
तू भी समंदर(मंजिल) की ओर जायेगा,
और इस जग में छाएगा ।

सर्दियों की बैंकिंग !!


कुछ तो हवा सर्द थी, कुछ अनसुलझे खयाल भी ,
न जाने कब सो गया, बिना किसी एहसास के,
सुबह हुई, 'सूरज' भी डरा सहमा सा,
अपना चेहरा बादलों में छुपाया हुआ,
इस आस में शायद ये धुंध छंटे,
जाना पड़ा हर दिन की तरह इस फ़िक्र में,
कहीं कुछ मजदूरी न हाथ से निकल जाये,
फिर वापस वही सुर, वही ताल,
चारों ओर हर लम्हा, एक सी आवाज़,
'सर', 'मैडम', 'प्लीज', 'खाता',
ट्रिन ट्रिन, ट्रिन ट्रिन, ट्रिन ट्रिन,
बस इन्ही सब के बीच,
हर दिन, हर वक़्त उलझना,
जैसे कोई और ही दुनिया हो,
दोपहर की धूप को तो,
जैसे देख लेना भी गुनाह हो ,
जैसे तैसे अपने अंजाम की ओर,
हर शाम, छिपता छिपाता,
बेवक़्त, तेज़ कदम,
रोज लौटता हूँ घर, लुटा सा, झुका सा,
टूटा सा, कुचला सा,
सर्द हवा के झोंके संग लिए,
कुछ नए अनसुलझे सवालों के बीच,
हर सुबह फिर से उसी दुनिया में आने को ।

काश !!


काश थाम सकते हम ,
ज़िन्दगी के कुछ अनमोल पल।

वो किसी का अचानक मिल जाना ,
जैसे हो जमाने से बिछड़े हुए।

वो सूरज की पहली किरण ,
जैसे ताजगी भर दे हर सांस में।

वो अल्हर सावन की छटा,
जैसे बादलों में चाँद छुपा हो।

वो बरखा की पहली बूंद,
जैसे सोंधी मिटटी की खुशबु लिए।

वो मदमस्त बरसात की रात ,
जैसे थिरकने को मजबूर कर दे।

वो पूस की कुहरे वाली ठंढी रात ,
जैसे कपकपाते हाथ अंगीठी लिए ।

वो खूबसूरत बसंत की बहार ,
जैसे हर खेत खिले हो सरसों के फूल ।

वो हर त्योहार में सबका मिलना जुलना ,
जैसे रंग भरे हो होली-दिवाली ।

काश ! थाम सकते हम ,
ज़िन्दगी के कुछ अनमोल पल ।