Monday 2 May 2016

कमबख्त दिल !


जब भी आपका ज़िक्र उठता है फिजाओं में,
कुछ आहटें हम तक भी पहुच जाती है।

इक एहसास सी हवायें जब दिल को लगती है,
मेरी धडकनों को और तेज़ कर जाती है।

संभाला करता हूँ खुद को,इन अनछुई जज्बातों से,
पर सांसें हैं की अक्सर थम सी जाती है।

ना जाने हर लम्हा क्यूँ चौंक सा जाता हूँ ,
पास होकर भी खुद को दूर पाता हूँ ।

अलफ़ाज़ अपनी अब क्या बयां करूँ ,
मौसम कोई भी हो, हर शाम तेरी याद बरसती है।

अब तो हर वक़्त यही इंतज़ार रहता है,
कमबख्त दिल अक्सर बेक़रार रहता है।

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