काश थाम सकते हम ,
ज़िन्दगी के कुछ अनमोल पल।
वो किसी का अचानक मिल जाना ,
जैसे हो जमाने से बिछड़े हुए।
वो सूरज की पहली किरण ,
जैसे ताजगी भर दे हर सांस में।
वो अल्हर सावन की छटा,
जैसे बादलों में चाँद छुपा हो।
वो बरखा की पहली बूंद,
जैसे सोंधी मिटटी की खुशबु लिए।
वो मदमस्त बरसात की रात ,
जैसे थिरकने को मजबूर कर दे।
वो पूस की कुहरे वाली ठंढी रात ,
जैसे कपकपाते हाथ अंगीठी लिए ।
वो खूबसूरत बसंत की बहार ,
जैसे हर खेत खिले हो सरसों के फूल ।
वो हर त्योहार में सबका मिलना जुलना ,
जैसे रंग भरे हो होली-दिवाली ।
काश ! थाम सकते हम ,
ज़िन्दगी के कुछ अनमोल पल ।
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